Random thoughts on politics.

I wrote these lines about a decade back.. I then, had no real clue of politics but now when I look at this it is so apt for today.

आसमान से आयें है जायेंगे आसमानों में
गुज़रे कभी स्मशानो से, ठहरे कभी मकानों में
इस छोटे से सफ़र में न जाने क्या क्या देखा हमने
प्यासे को प्याऊ की जगह जाते देखा मयखानों में

अपनी माँ को बेचते हुए देखा उस दरिंदे को
सर से पाँव तक डूबा था जो उसके अहेसानो में
वतनपरस्त के नाम पर वतन को बेचने चला
कर दिया उसने जो सुना नहीं फसानो में

चौतरफ इस ज़माने में दरिंदगी फैली है "धिमंत"
कौन है वह जिसने डाल दी शैतानियत इंसानों में
दुनिया की नादारी से ठेस लगी है इस दिल में
उस मालिक खुदा को ढूंढते है दीवानों में

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